-सोलर सिस्टम से बिजली बचाने में निजी संस्थानों की बढ़ रही भागीदारी
-बड़े अस्पतालों, होटल और कॉमर्शियल संस्थानों में हो रहा नया प्रयोग
जयपुर। सरकारी भवनों में सोलर एनर्जी का दायरा बढ़ने के बीच पार्किंग स्थलों पर सोलर प्लांट्स से बिजली बनाने में प्राइवेट सेक्टर भी अब आगे आ रहे हैं। एक ओर जहां सरकारी भवनों के ढांचागत निर्माण की वजह से पार्किंग में सोलर पैनल नहीं लग पा रहे हैं, वहीं प्राइवेट अस्पताल, बिल्डिंग्स और अन्य भवनों का निर्माण ही इस तरह से किया जा रहा है, जिससे वहां पार्किंग एरिया में सोलर पैनल लग सकें और बिजली का उत्पादन होने के साथ ही बिजली की बचत भी हो। वहीं इसके इतर सरकारी भवनों में इच्छा शक्ति की कमी की वजह भवनों का ढांचा ही इस तरह बनाया जाता है कि पार्किंग एरिया जैसी बड़ी जगहों पर सोलर पैनल नहीं लग पाते और लाखों यूनिट बिजली का उत्पादन इससे कम हो रहा है। सरकारी नजरिए में बदलाव आए तो आगामी दिनों में पार्किल स्थलों से सस्ती सोलर बिजली बनाकर बिल में और अधिक कमी जा सकती है।
निजी सेक्टर दिखा रहे राह:
शहर का रुक्मणी बिरला हॉस्पिटल सेव एनर्जी मुहिम में अपना खास योगदान दे रहा है। पार्किंग एरिया में सोलर पैनलों के उपयोग से न केवल हॉस्पिटल अपनी ऊर्जा संचय कर रहा है, बल्कि प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भी निर्वहन कर रहा है। हॉस्पिटल में स्थापित 960 किलोवाट के 2880 सोलर पैनल प्रतिमाह हजारों यूनिट बिजली पैदा करते हैं, जिससे सालाना लाखों यूनिट बिजली बचती है। इस योजना के माध्यम से अस्पताल में न सिर्फ सोलर एनर्जी उत्पादित होती है, बल्कि यहां के मरीजों की गाड़ियों को भी छाया मिलती है, जिससे उन्हें सुखद और आरामदायक अनुभव होता है। हॉस्पिटल के वाइस प्रेसिडेंट और यूनिट हेड अनुभव सुखवानी ने बताया कि सोलर पैनल पर्यावरण को बचाने में भी एक बड़ा माध्यम है। इस पहल के माध्यम से हमने लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया है। इसके परिणाम स्वरूप पॉल्यूशन की मात्रा भी कम हो रही है और हॉस्पिटल में एक स्वच्छ वातावरण बना है। इसी तरह से प्रदेश के कई निजी अस्पताल, होटल और अन्य कॉमर्शियल संस्थान अपनी पार्किंग में सोलर पैनल लगाकर सस्ती बिजली बना रहे हैं।
भवनों की छाया और पेड पार्किंग में सोलर लगाने में बड़ी बाधा:
सरकारी भवनों में सोलर सिस्टम लगाने के लिए राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम लिमिटेड के माध्यम से यूनिट रेट तय होती है। करीब तीन-चार साल पहले करीब 20 सरकारी भवनों में करीब सवा चार रुपए प्रति यूनिट दर से सोलर सिस्टम को मंजूरी दी गई। अन्य सरकारी भवनों पर सिस्टम के लिए नई रेट इस महीने तय होगी। अक्षय ऊर्जा निगम अफसरों का कहना है कि हम केवल रेट तय करते हैं। विभागों को सोलर डवलपर से निविदा आधार पर सिस्टम लगवाना होता है। सरकारी भवनों में अधिकांश पार्किंग में छाया रहने और पेड़ों के होने के कारण सोलर पैनल अपेक्षाकृत बिजली उत्पाादन नहीं करते। प्राइवेट सेक्टर में पार्किंग में ऐसी बाधाएं कम होने के कारण सोलर पैनल सफल हो रहे हैं।
4500 किलोवाट उत्पादन को और बढ़ाने की तैयारी:
सरकारी कार्यालयों, विश्वविद्यालय-कॉलेज, अस्पतालों में अभी करीब 4500 किलोवाट सौर ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है। राज्य सरकार की सभी सरकारी भवनों में सोलर पैनल लगाने की मंशा है, ताकि बिजली बिलों का आर्थिक भार कम किया जा सके। इसके लिए छह अलग-अलग चरणों में प्रक्रिया पूरी की जानी है। सोलर डवलपर को सिस्टम लगाने के बाद 25 साल तक रखरखाव भी करना होता है। प्रदेशभर के सरकारी भवनों की क्षमता 50 मेगावाट तय की गई है। कुछ भवनों में अक्षय ऊर्जा निगम से मंजूरी और कुछ भवनों में रील के जरिए सोलर सिस्टम लगाया जाता है।
इनका कहना है…..
सरकारी भवनों के लिए करीब चार साल पहले करीब सवा चार रुपए प्रति यूनिट सोलर बिजली रेट तय की थी। अन्य भवनों के आवेदन के लिए रेट इस महीने तय होगी। पार्किंग स्थलों पर पैनल से बिजली उत्पादन बढ़ सकता है, लेकिन विभाग प्रमुखों को डवलपर से चर्चा के बाद फैसला लेना होता है। पार्किंग में शेडो और अन्य कारणों से कई बार उत्पादन कम होता है।
-राजीव सिंह, एक्सईएन, राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम।