हाईकोर्ट ने कहा कि SC/ST एक्ट की धारा 15ए का अनुपालन, जिसके तहत SC/ST Act के तहत आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई से पहले शिकायतकर्ता को सूचना भेजना जरूरी है, तब भी पूरा होता है, जब ऐसी सूचना SMS व्हाट्सएप के जरिए मोबाइल पर भेजी गई हो।
कोर्ट ने कहा पुलिस महानिदेशक और राज्य के प्रमुख सचिव को सभी जांच अधिकारियों/सभी पुलिस स्टेशनों के स्टेशन हाउस अधिकारियों को निर्देश देने का निर्देश दिया कि SC/ST Act के तहत अपराधों के लिए दायर जमानत याचिकाओं के लिए जब भी कोर्ट सरकारी वकील को शिकायतकर्ता/पीड़ित/पीड़ित पक्ष को सूचना भेजने का निर्देश दे, तो वे रिकॉर्ड पर मैसेज/टेक्स्ट मैसेज/व्हाट्सएप मैसेज का सबूत/स्क्रीनशॉट पेश करें। यह कोर्ट को सक्षम बनाने के लिए है।
संदर्भ के लिए, SC/ST Act की धारा 15ए में यह अनिवार्य किया गया कि SC/ST Act के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोपी व्यक्तियों की जमानत पर सुनवाई से पहले शिकायतकर्ता को सूचना भेजी जानी चाहिए।
जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने अपने आदेश में कहा-
“यह न्यायालय इस तथ्य पर गौर करता है कि हम सूचना एवं प्रौद्योगिकी के युग में रह रहे हैं। सूचना एवं प्रौद्योगिकी के युग में कानून की प्रक्रिया बैलगाड़ी या घोंघे की गति से नहीं चल सकती। सभी पुलिस थानों के थाना प्रभारी और जांच अधिकारी को नवीनतम तकनीकी विकास के साथ अपग्रेड किया जाना आवश्यक है। प्रौद्योगिकी के लाभों को लोगों की सेवा में लगाया जाना चाहिए। कानूनी प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी विशेष रूप से नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाने और सामान्य रूप से कानून की प्रक्रिया को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। राजस्थान राज्य के प्रत्येक जिले में एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाना आवश्यक है, जो पीड़ितों को नोटिस देने और उनकी तामील करने के कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए सौंपे गए कर्मचारियों की निगरानी करेगा।”
जस्टिस ने आगे कहा,
“इन विचित्र परिस्थितियों में यह न्यायालय पुलिस महानिदेशक (DGP) और प्रमुख सचिव, गृह विभाग, राजस्थान सरकार को सभी जांच अधिकारियों/सभी पुलिस स्टेशनों के स्टेशन हाउस अधिकारियों को यह निर्देश देने के लिए सामान्य परमादेश जारी करता है कि अब से उन सभी जमानत आवेदनों (आपराधिक अपील) में, जो SC/ST Act के तहत प्रस्तुत किए जाते हैं या अपराध, BNSS के लागू होने से पहले हुए हैं, जब भी अदालत लोक अभियोजक को शिकायतकर्ता/पीड़ित/पीड़ित पक्ष को सूचना भेजने का निर्देश देती है तो वे रिकॉर्ड पर मैसेज/टेक्स्ट संदेश/व्हाट्सएप मैसेज का सबूत/स्क्रीनशॉट पेश करेंगे, जिससे अदालत आरोपी व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत जमानत आवेदन (आपराधिक अपील) पर फैसला करने से पहले उचित आदेश पारित कर सके।”
न्यायालय ने नोट किया,
“ऐसा प्रतीत होता है कि महेंद्र छीपा के मामले में 28.11.2022 को जमानत दिए जाने के बाद 03.12.2022 को शिकायतकर्ता को फिर से सूचना भेजने के लिए संबंधित जांच अधिकारी की ओर से गलती हुई। यह भी प्रतीत होता है कि आरोपी व्यक्ति महेंद्र छीपा के मामले में जमानत का आदेश पारित होने के बाद भी सरकारी वकील/लोक अभियोजक और जांच अधिकारी के बीच कुछ गलतफहमी या गैर-संचार था।”
न्यायालय ने कहा,
“यह न्यायालय इस तथ्य पर ध्यान देता है कि हम सूचना और प्रौद्योगिकी के युग में रह रहे हैं। सूचना और प्रौद्योगिकी के युग में कानून की प्रक्रिया बैलगाड़ी की गति या घोंघे की गति से नहीं चल सकती प्रौद्योगिकी के फलों को लोगों की सेवा में लगाया जाना चाहिए।”
इस पृष्ठभूमि में पुलिस महानिदेशक और प्रमुख सचिव, राजस्थान को सभी जांच अधिकारियों/स्टेशन हाउस अधिकारियों को निर्देश देने का निर्देश दिया गया कि जब भी अधिनियम की धारा 15 ए के तहत नोटिस भेजा जाता है तो वे रिकॉर्ड पर मैसेज/टेक्स्ट संदेश/व्हाट्सएप मैसेज का सबूत/स्क्रीनशॉट पेश करेंगे।
कोर्ट ने कहा कि धारा 15 ए (3) के तहत नोटिस अनिवार्य था। हालांकि, जमानत की सुनवाई के दौरान पीड़ित की उपस्थिति अनिवार्य नहीं थी। इस तरह की भागीदारी का विकल्प पीड़ित पर छोड़ा जा सकता था।
तदनुसार आवेदन खारिज कर दिए गए।
केस टाइटल: रमेश बैरवा बनाम राजस्थान राज्य और अन्य संबंधित आवेदन