संत और सरकार में दरारचार, पीठों के शंकराचार्य नहीं जाएंगे संत रूष्ट, विवाद-दर-विवाद

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अयोध्या में भगवान श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में सरकार के दखल के खिलाफ संत समाज में विवाद बढता जा रहा है। चार पीठों के शंकराचार्यों ने वहां जाने से इन्कार कर दिया है। उसके साथ उनके अनुयायियों ने भी। इधर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने यह कह कर इस विवाद की आग में घी डाल दिया कि मंदिर शैव शाक्त और संन्यासियों का नहीं है। यह रामानन्द सम्प्रदाय का है। इस पर इलाहाबाद के विद्वान शशिकांत ने उल्टा चंपत राय को निशाने पर ले लिया कि यदि मंदिर रामानन्द सम्प्रदाय का है तो संघ यहां क्या कर रहा है। चंपत राय सनातन धर्म को बांटने का काम न करें। यहां चंपत राय भूल रहे हैं कि संत हर मंदिर की शोभा हैं। उनके बिना मंदिर, मंदिर ही नहीं लगता।चंपत राय ने यह जो कह दिया यह उनका ओछापन है क्योंकि इन शंकराचार्यों ने तो कभी ऐसा नहीं कहा कि वे जिस अमुक मठ के हैं वह सिर्फ उसी सम्प्रदाय विशेष का है। लेकिन यह दोष अकेले चंपत राय का नहीं है, सत्ताई ताकत का स्पर्श पाते ही अच्छे-अच्छों के सुर बदल जाते हैं। चंपत राय के भी बदल गए।
अस्तु संतों में इस महोत्सव को राजनीतिक अखाड़ा बनाए जाने से नाराज़गी है, साथ ही यह भी कि इसमें सरकार बेजा दखल कर रही है। इसके अलावा सभी शंकराचार्य इस प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव को धर्म विधान के अनुरूप भी नहीं मान रहे। इन सब की नाराजगियों की खबरें दिल्ली और यूपी के अनेक अखबारों में पिछले दस-पंद्रह दिनों से प्रकाशित हो रही हैं।
रामायण में उल्लेखित है कि राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले भगवान शिव की पूजा की थी और सपत्नीक की थी। उस पूजा की पूर्णता के लिए रावण खुद सीता को लेकर आया था। रावण चूंकि प्रकांड पंडित था और वह यह जानता था कि बगैर सीता की मौजूदगी के राम की शिव पूजा सार्थक नहीं होगी। उसने पूजा को खंडित नहीं होने दिया और सीता को लेकर आ गया। ऐसे ही जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि यज्ञ किया तब उन्होंने भी वामांग में भार्या की मौजूदगी को अनिवार्य समझा और पत्नी सावित्री के न आ पाने पर गायत्री को पत्नी का दर्जा देकर यज्ञ को सार्थकता प्रदान की। अब अयोध्या में भगवान श्री राम का प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में पीएम मोदी को लेकर यह भी विवाद है। नाराज़ संत इसे शास्त्र सम्मत नहीं मानते। जो संत कह रहे हैं वह हम आप सब भी मानते हैं लेकिन यहां चुप हैं।
पूजा किसी भी किस्म की हो, बग़ैर वामांग के न पूर्ण होती है न ही यथेष्ट मानी जाती है। पूजा शब्द ही स्त्री वाचक है फलतः बग़ैर भार्या के किसी भी किस्म की पूजा कोई मायने नहीं रखती। अब ऐसे में देश के अनेक सिद्ध पुरुषों ने भगवान श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में अयोध्या जाने से इन्कार कर दिया है। गोवर्धन पुरी पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती, पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदा पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती, जगतगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और श्रृंगेरी शारदा पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ तथा इनके साथ इनके अनुयायी भी नहीं जाएंगे।
यहां सबसे विचित्र बात यह है कि संतों को अयोध्या में श्रीराम मंदिर के दर्शन के लिए सरकार से इजाजत लेनी होगी। जिस दिन मोदी वहां पर हैं उस दिन संतों का प्रवेश निषेध है। संत लोग दूसरे दिन दर्शन करने जा सकते हैं।
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने तो पहले ही कडे शब्दों में कह दिया था कि मै वहां क्या तालियां बजाने जाऊं। यहां मंदिर नहीं मकबरा बन रहा है। उन्होंने स्पष्टतः कहा कि शंकराचार्य का पद राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से नीचे नहीं होता जो एक दिन बाद हमें मंदिर में दर्शन करने का आदेश दिया। हमारा स्थान पृथ्वी पर सबसे ऊंचा है। अपने पद की गरिमा और महिमा बनाए रखने के लिए हम वहां नहीं जाएंगे। हमें श्रीराम से परहेज़ नहीं है अपितु कुटिल नेताओं की राजनीति से परहेज़ है। शारदा पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा कि मंदिर चूंकि पूर्णतः बना ही नहीं ऐसे में प्राण-प्रतिष्ठा का कोई औचित्य नहीं। वैसे भी पौष मास में यह कार्य उचित नहीं। यह सब राजनीति से प्रेरित है क्योंकि राम नवमी जब आएगी तब तक लोक-सभा चुनावों के कारण आचार संहिता लागू हो जाएगी जिसके कारण भाजपा को इसका कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलेगा। इसीलिए भाजपा यह करवा रही है।
जगतगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती भी नहीं जाएंगे। उन्होंने तो और कठोर स्वर में कह दिया कि वेदों में यह कार्य संतों की जगह किसी दूसरे से कराया जाना वर्जित है। फिर भी सरकार धर्म विरुद्ध आचरण कर रही है। उधर श्रृंगेरी शारदा पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ ने भी इन्कार कर दिया। उनका भी यही कहना है कि निर्माणाधीन मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पूर्णतः अधर्म आचरण है। उन्होंने कटाक्ष किया कि क्या इसी दिन को देखने के लिए स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने अदालत में राम मंदिर यहीं होने के प्रमाण प्रस्तुत किए थे, क्या इसी दिन के लिए निश्चलानंद सरस्वती ने 20-25 साल तक अदालत में यह लडाई लडी थी ॽ
कुल मिलाकर इस प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर साधु समाज में मनमुटाव है। कुछ सरकार के साथ चल हैं और कुछ वे जो अपने सिद्धांतों पर अडिग हैं। इधर जाने-माने कवि कुमार विश्वास ने भी चुटकी लेते हुए कह दिया कि यह प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव राजनीति के अलावा कुछ नहीं।
अब दूसरी बात, सरकार हो या राजा, किसी भी मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा किसी पंडित के माध्यम से करवाता है, ख़ुद नहीं करता। सम्राट अशोक ने भी देश में सैकड़ों मंदिर बनवाए थे, उसने भी मंदिरों में मूर्ति स्थापना किसी पुरोहित द्वारा ही करवाई थी, खुद नहीं की।अब यहां पीएम खुद कर रहे हैं तो यह शास्त्र सम्मत नहीं है, संत लोग यही कह रहे हैं। इसके अलावा जिसने जीवन में साधुत्व अंगीकार कर लिया है, वह अकेला पूजा करने का अधिकारी है लेकिन जो सांसारिक जीवन जी रहा है वह ईश्वर की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करे, यह श्रेष्ठ नहीं है। यह दंभ है जो अमूमन हर इन्सान करता है और वही गलती यहां हो रही है। इन्ही वजहों का उल्लेख करते हुए इन ज्ञानी साधुओं ने इस प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में शामिल होने से इन्कार कर दिया। अब एक सच यह भी कि जो साधु हैं लेकिन इस प्रतिष्ठा महोत्सव में शामिल हो रहे हैं वे सिर्फ पीएम मोदी को खुश करने के लिए हो रहे हैं। यह साधुत्व भाव नहीं बल्कि स्वार्थ भाव है जो एक ” साधु ” में नहीं होता। अब बचे नेता लोग, तो वे पक्ष के हों या विपक्ष के, पीएम के लिए आयेंगे ही लेकिन यथार्थ यही है कि यह आयोजन धर्म विधान के अनुरूप होता तो श्रेष्ठ होता। (This article popular in social media is by Ashok Sharma )

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