पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने हाल ही यह ऐलान कर दिया कि वे राम लल्ला की प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने सख्त आपत्ति जताई है कि मोदी वहां भगवान श्रीराम की मूर्ति को स्पर्श करें और मै वहां खडे होकर ताली बजाऊं, ऐसा नहीं हो सकता। यह मर्यादा के खिलाफ है। कल रतलाम में स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि पीएम मोदी का उस मूर्ति को स्पर्श करना ही मर्यादा के खिलाफ है। अतः वे ऐसी मर्यादा के उल्लंघन के साक्षी नहीं बन सकते। मुझे निमंत्रण मिला कि मै एक ही व्यक्ति के साथ आयोजन में शामिल हो सकता हूं। राम मंदिर में जिस तरह की राजनीति हो रही है वह नहीं होनी चाहिए।
आपको बतादें कि स्वामी निश्चलानंद पुरी के ऐसे संत हैं जिनके अनुयायी देश-विदेश दोनों जगह हैं। वे एक मात्र ऐसे संत हैं जिनसे विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व बैंक तक सलाह ले चुके हैं। 18 अप्रेल 1974 में 31 वर्ष की उम्र में हरिद्वार में धर्म सम्राट करपात्री महाराज की उनका संन्यास सम्पन्न हुआ था। उसके बाद उनका नाम निश्चलानंद सरस्वती रखा गया। वे गोवर्धन मठ पुरी के 145 वें शंकराचार्य हैं।
जो बात स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कही थी ठीक यही बात शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भी कही। उन्होंने भी कहा कि राम मंदिर को राजनीति का अखाड़ा न बनाएं। उन्होंने यह भी कहा था कि यह आयोजन रामनवमी के दिन होना चाहिए था। अब पीएम ने शंकराचार्यों और धर्माचार्यों के बने हुए ट्रस्ट को दरकिनार कर एक नया ट्रस्ट बना लिया जिसमें उन्होंने अपने लोगों को रख लिया, यह तो कोई योगदान नहीं हुआ। अभी इस आयोजन में 17 दिन शेष हैं और इससे पहले ही एक के बाद एक नए-नए विवाद पैदा होते जा रहे हैं जो आगे चलकर क्या रंग दिखाएंगे अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। और फिलहाल अंत में यह कि मोदी खुद प्राण-प्रतिष्ठा करना चाहते हैं, यह राजनीति है। वे किसी संत को इसके लिए चुनते तो यह उनकी श्रेष्ठता होती। ऐसे में किसी भी किन्तु-परन्तु की बात नहीं उठती।