-महेश झालानी
परिवहन विभाग और यातायात पुलिस की लापरवाही और भ्रस्टाचार की वजह से हजारों लोगों की जिंदगी पर तलवार लटक रही है। आए दिन छोटे मोटे हादसे तो होते ही रहते है। किसी दिन भीषण हादसा हो जाए तो कोई ताज्जुब नही होना चाहिए। क्योंकि इन दर्दनाक हादसो को स्वयं परिवहन विभाग और यातायात पुलिस निमंत्रण दे रही है।
अपनी जेब भरने के लिए परिवहन विभाग ने ओला और उबर जैसी कैब कम्पनियो को मौत का लाइसेंस जारी कर रखा है। इन दोनों की 80 फीसदी से ज्यादा गाड़िया खटारा और नकारा है। कब किसकी जान ले ले, कहा नही जा सकता। सूत्रों की माने तो अधिकांश कैब फिजिकल फिट नही है। फिर भी ये बेखौफ और सरपट दौड़ रही है। हुंडई कम्पनी की इयोन कार को असुरक्षित मानते हुए बहुत पहले ही बंद कर दिया था। ये मौत को ढोने वाली तमाम गाड़िया ओला और उबर के जरिये लोगो के जीवन से खिलवाड़ कर रही है। कायदे से हर गाड़ी का फिटनेस कराना आवश्यक है। लेकिन ओला और उबर पर ये नियम इसलिए लागू नही है क्योंकि कम्पनी के संचालक परिवहन विभाग और यातायात पुलिस के नकद दामाद है। प्रतिमाह कम्पनियो द्वारा विभागीय अधिकारियों को घूंस के रूप में “टुकड़ा” फेंका जाता है।
सरकार को चाहिए कि उबर और ओला की खटारा और नकारा वाहनों का अविलम्ब संचालन बन्द करे और रिश्वतखोर अफसरों की जांच कराई जाए ताकि परिवहन माफिया का बदनुमा चेहरा उजागर हो सके। बताया जाता है कि जनता के बजाय सरकारी अफसर ओला व उबर के प्रति ज्यादा समर्पित है। तभी तो लाखों रुपये रिश्वत के रूप में प्राप्त होते है।