-महेश झालानी
लगता है कि ज्यादा उछल-कूद करने वाले बीजेपी के बड़बोले नेता डॉ किरोड़ी लाल मीणा के पर कतर दिए गए है। तभी तो उनकी बोलती बंद होगई है। अब वे न रीट परीक्षा पर कुछ बोलते है और न ही एसआई परीक्षा निरस्ती के बारे में उनकी जुबान खुलती है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री द्वारा उन्हें जोर का झटका धीरे से दिया गया है। तभी से किरोड़ी की जुबान को ताला लग गया है।
आपको ध्यान होगा कि पीएम विजिट से पहले किरोड़ी की धींगा मस्ती चरम पर थी। लेकिन अब उनकी जबान पर पूरी तरह ताला जड़ चुका है। ध्यान देने की बात यह भी है कि जिस पुलिस निरीक्षक और महेश नगर की थाना प्रभारी कविता शर्मा ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था, बाबा ने इस पुलिस निरीक्षक को तबाह करने का प्रण लिया था।
किरोड़ी ने प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान किया था कि जब तक वे कविता शर्मा को सेवा से बर्खास्त नही करवा देंगे, तब तक वे चैन से बैठने वाले नही है। किरोड़ी का आरोप है कि कविता की नियुक्ति फर्जी तरीके से हुईं है, लिहाजा इसे बर्खास्त किया जाए। कविता की जमीन के मम्मले में हुई जांच में भारी अनियमितताए पाई गई है, इन्हें फील्ड पोस्टिंग क्यो और कैसे दी गई है, यह भी जांच का विषय है।
केबिनेट मंत्री द्वारा सार्वजनिक रूप से आरोप लगाने के बाद भी कविता का बाल बांका न होना यह जहिर करता है कि सरकार ने इनके पूरी तरह से पर कतर दिए है। अब ये फड़फड़ा तो सकते है, लेकिन उड़ नही सकते है। उधर समूचे पुलिस महकमे में कविता शर्मा की इस बात को लेकर वाहवाही हो रही है कि उन्होंने किरोड़ी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उनकी सारी हेकड़ी निकाल दी। इसके इतर कविता शर्मा के खिलाफ कोई कार्रवाई नही की गई।
पहले चाहे पेपरलीक का मामला हो या अन्य जनहित से जुड़ा मुद्दा, किरोड़ी सबसे आगे रहते थे। लेकिन शीर्षस्थ नेतृत्व ने पूरी तरह अपाहिज और विकलांग बनाकर छोड़ दिया है। जाहिर है कि भजनलाल ने मामा के साथ साथ किरोड़ी को बाबा कहकर सारी अकड़ ढीली करदी। निश्चित रूप से इस चाणक्य नीति अपनाने के लिए भजनलाल बधाई के पात्र है जिन्होंने पगलाए हाथी को पिंजरे में कैद होने को विवश कर दिया।
किरोड़ी यह सोचते है कि चुप रहने से उन्हें मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण विभाग मिल जाएगा तो यह सोच बेबुनियाद है। यदि उन्हें कुछ देना ही होता तो मदन दिलावर, जोगाराम पटेल, झाबर सिंह खर्रा और जवाहर सिंह बेडम से कम हैसियत नही होती। जब किस्मत अनुकूल नही हो तो किरोड़ी जैसे कद्दावर नेता को जवाहर सिंह बेडम जैसे राज्यमंत्री के बार बार घर जाकर गिड़गिड़ाना नही पड़ता। इसी को कहते है जंगल के शेर को सर्कस का शेर बनाना। भगवान राजनीति में ऐसी किसी व्यक्ति की दुर्दशा नही होनी चाहिए।
भाई जगमोहन की पराजय से किरोड़ी पहले ही व्यथित थे। अब उनको असली हैसियत दिखाकर उन्हें आईना दिखा दिया। वे एक चक्रव्यूह में उलझ चुके है जहां से बाहर आने का कोई रास्ता दिखाई नही देता। रिंग मास्टर के निर्देशानुसार तमाशा दिखाने के अलावा कोई विकल्प बचा नही है। अंदर से बेहद दुखी है। किसी दिन उनका आंतरिक दुख लावे की तरह फुट सकता है।