आजादी के बाद से अब तक बगैर शराब और शबाब के कभी भी कोई भी चुनाव सम्पन्न नहीं हुआ। तब से दोनों की गलबहियां बा-दस्तूर चली आ रही हैं। पीढ़ियां बीत गई, जमाने बदल गए ,चेहरे बदल गए, लेकिन इन दोनों का याराना दशकों से परवान चढ़ा आ रहा है। अब चूंकि चुनाव चौखट पर हैं तो हर चुनाव की भांति इस चुनाव के लिए भी करोड़ों की शराब देश के हर राज्य में चोरी-छिपे अंदर-बाहर हो रही है। और शबाब, उन्होंने भी अपने भाव बढ़ा कर सजना-संवरना शुरू कर दिया है। भले ही शबाब लिपा-पुता हो लेकिन नशे में किसे पता चलता है।
चूंकि राजस्थान सहित अन्य राज्यों में चुनावों ने दस्तक दे दी है फलतः शराब के गोदाम के गोदाम भरे भी जा रहे हैं और खाली भी हो रहे हैं। मौजूदा समय में अकेले राजस्थान में प्रतिदिन लोग 36 करोड रुपए की शराब और बीयर पी रहे हैं। और जयपुर में रोज एक करोड,40 लाख रुपए की शराब गटकी जा रही है। पिछले महीने सितम्बर में एक महिने में ही लोग 1100 करोड रुपए की शराब गटक गए। इतना राजस्थान में एक साल में पानी पर भी खर्च नहीं होता। मतलब कि राजस्थान में एक साल में 13 अरब और 40 करोड़ रुपए की शराब गटक ली जाती है। यह जान कर आश्चर्य होगा कि पिछले साल 31 दिसंबर की रात जश्न मनाने के लिए जयपुर के लोगों ने सिर्फ दो रात में एक अरब 11 करोड रुपए की शराब पी ली। ये आंकड़े आबकारी विभाग ने जारी किए। शेष चार राज्यों में शराब की लत इससे कहीं ज्यादा है। राजस्थान में एक महिने में जितने रूपयों की शराब पी ली जाती है उतने रूपयों में पूरे देश को एक साल तक मुफ्त खाना खिलाया जा सकता है। लेकिन देश और देशवासियों के लिए कौन सोचता है। राजनीति में कुछ ही चेहरों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश नेता इसके आदी हैं। बल्कि शराब का सेवन तो अब स्टेटस सिंबल बन गया है, जिसमें कई राजनीतिक चेहरे रम चुके हैं।शराब और शबाब के चटखारे लेने वाले हमारे पत्रकारों की बिरादरी में भी कम नहीं हैं। पुरूष भी और स्त्रियां भी।
सन 1977 में भैरोसिंह शेखावत सरकार ने राजस्थान में शराबबंदी लागू की थी लेकिन उन्हें जल्दी ही इस फैसले को वापस लेना पड़ा। उन्होंने शराबबंदी लागू तो कर दी लेकिन इसका उन्हें नुकसान भी इस रूप में उठाना पड़ा कि वे फिर राजस्थान के सीएम नहीं बन पाए। इसके बाद भैरोसिंह शेखावत जब उपराष्ट्रपति बने तब राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने उनके सम्मान में एक भोज रखा। एक जानकारी और दे दूं कि भैरोसिंह शेखावत ने 5-6 साल पुलिस में भी नौकरी की थी लेकिन फिर छोड दी और अपने गांव जाकर खेती-बाड़ी करने लगे। लेकिन उनके बडे भाई को राजनीति में मौका मिला तो पीछे-पीछे शेखावत भी चल दिए।बस फिर वे राजनीति में उत्तरोत्तर प्रगति करते चले गए। और जब गहलोत सरकार आई उसके बाद उन्होंने शराबबंदी से साफ इन्कार कर दिया। बस उन्होंने यह सलाह जरूर दी कि जिसे पीना है वह घर ले जाकर पीए।
अब थोडी बात शबाब की भी हो जाए। चुनाव आते ही पार्टी कार्यकर्ताओं के रूप में कुछ लड़कियां और युवतियां सक्रीय की जाती हैं ताकि पुलिस की निगाह से भी बची रहें और पार्टी के शौकीनों की सेवा भी होती रहे। यद्यपि पुलिस भी यह सब समझती है लेकिन मजबूरी है कि हाथ नहीं डालती। धीरे-धीरे ये स्त्रियां रवां हो जाती हैं और पार्टी की कार्यकर्ता बन कर साथियों की सेवा करती रहती हैं। इन्हें रौब झाडना भी आ जाता है और मलाई खाना भी। मैने अपने 40 साल के कैरियर में ऐसे कुछ चेहरों को देखा है जो कभी किराए के मकानों में थीं और आज कोठी की मालकिन हैं। इसीलिए मैने कहा था कि शराब और शबाब गलबहियां डाले राजनीति में साथ-साथ चलते हैं। शराब और शबाब के चटखारे लेने वाले हमारे पत्रकारों की बिरादरी में भी कम नहीं हैं। कुछ कई घरों को उजाड चुके हैं तो कुछ कई जगह जूते भी खा चुके हैं। अजमेर के एक बडे अख़बार के रेजिडेंट एडिटर अपनी ही कर्मचारी की आशिकी में ऐसे पडे कि नौकरी से हाथ धोना पड़ा। कुछ ने शबाब को इधर-उधर घुमा कर बीजेएमसी करा दी।
विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख लोग शराब के सेवन से मर जाते हैं। इसके सेवन से 200 से ज्यादा बीमारियां होती हैं। भारत में हर साल 5 अरब लीटर शराब पी जाती है। पुरूष और महिलाओं का रेशो समान है। भारत में हर साल लगभग 2.6 लाख लोगों की मौत शराब पीने से ही होती है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत में हर 20 वां पुरुष शराब पीता है। इसी की रिपोर्ट के अनुसार देश में 13.27 करोड लोग शराब के आदी हैं। भारत सरकार को सबसे ज्यादा रेवेन्यू शराब से ही प्राप्त होती है। फेडरेशन ऑफ इंडिया चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल शराब का 23 हजार 466 करोड का कारोबार होता है।
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