अयोध्या में भगवान श्री राम का प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहा है त्यों-त्यों मान-मनुहार और टकराव का वातावरण बढता जा रहा है। एक तरफ केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है कि सरकार महोत्सव में अपने समर्थकों और प्रशंसकों को प्राथमिकता दे रही है तथा एक धार्मिक आयोजन का राजनीतिकरण कर रही है। दूसरी ओर विपक्ष इस पशोपेश में भी है कि समारोह में शामिल हों या नहीं। इसके अलावा कुछ लोगों को निमंत्रण मिला ही नहीं सो वे आग-बबूला हो रहे हैं कि क्या हम हिन्दू नहीं, क्या हम राम भक्त नहीं।
यदि ऐसे समारोह में शामिल होने पर राजनीति की जा रही है तो वह ठीक नहीं है। देश के एक आध्यात्मिक महोत्सव के लिए भी सरकार यदि गुटबाजी को प्राथमिकता दे, तो यह दिखावा है, चोचलेबाजी है और षड्यंत्र है।आध्यात्मिक महोत्सव तो है ही नहीं। चूंकि आध्यात्मिकता में दुर्भावना का प्रवेश निषेध है। इसीलिए यह महोत्सव अब राजनीति का अखाड़ा बन गया है।
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने आज-तक चैनल को दिए गए अपने इंटरव्यू में ऐसा ही कुछ कहा। उन्होंने आपत्ति उठाई है कि राम मंदिर को राजनीति का अखाड़ा न बनाएं।पहले सर्वदलीय सभा बुलानी चाहिए थी लेकिन नहीं बुलाई। इस मंदिर के नाम पर खुलेआम राजनीति हो रही है। जो भी राम भक्त है वो वहां जाने का हकदार है। जिसने भी राम जन्म भूमि पाने के लिए प्रयास किया है उसे निमंत्रण दिया जाना चाहिए। वह आराधना और उपासना का स्थल है। यहां नरेंद्र मोदी ने क्या किया ॽ अदालत से फैसला आने के बाद जब यह साफ हो गया कि राम जन्म भूमि राम लल्ला की है, उसके बाद जो शंकराचार्यों और धर्माचार्यों का ट्रस्ट बना हुआ था उसे दरकिनार करके प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक नया ट्रस्ट बनाया और उसमें अपने लोगों को रखा, यह तो कोई योगदान नहीं हुआ। भूमि प्राप्त करने के बाद उनकी सरकार ने जो चाहा कर लिया। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि राम जन्म भूमि प्राप्त करने के लिए तत्संबंधी तथ्य जुटाने, उनको इकट्ठा करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने निभाई थी। अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि यह आयोजन अभी ठीक नहीं। यह राम नवमी पर होना चाहिए था लेकिन पता नहीं क्यों उससे पहले यह आयोजन किया जा रहा है जबकि राम नवमी कुछ दिनों बाद आने वाली है। उस दिन यह आयोजन होता तो श्रेष्ठ था।