प्रियंका वाड्रा अनफिट, राजस्थान को नहीं होगा कोई फायदा

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Jaipur

प्रियंका वाड्रा, कांग्रेस पार्टी की महासचिव। वे दो दिन पहले दौसा आई थीं। वहां उसने पीएम मोदी को लेकर जो कुछ कहा उसने प्रियंका की ही शख्सियत को हल्का किया। पहले प्रियंका ने मालासेरी डूंगरी के मंदिर में बंद लिफाफे में दिये गए 21 रूपए का राग अलापा और उसके बाद भाजपा के मोदी फेस पर चुनाव लडने की बात पर चुटकी ली कि क्या मोदी राजस्थान के सीएम बनेंगे। और तीसरा यह कि यहां बीजेपी के सभी नेता खुद को सीएम घोषित कर रहे हैं। दो टूक,ये वो घिसी-पिटी बातें हैं जो कई बार उछाली जा चुकी हैं। अब इन बातों का कोई मतलब नहीं। राजस्थान के चुनाव से जस्ट पहले प्रियंका की यह पहली सभा थी अतः उन्हें मंच पर आने से पहले होमवर्क करके आना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस स्पीच ने प्रियंका की शख्सियत को ही हल्का किया। अतः प्रियंका का राजस्थान आने का कांग्रेस को कोई फायदा नहीं होगा। जबकि वे कांग्रेस की महासचिव हैं, आश्चर्य कि उनकी दादी कुशल राजनीतिज्ञ थीं, उनके पिता भारत के पीएम रहे, उनके भाई राहुल की अपनी राजनीतिक शख्सियत है लेकिन प्रियंका ने बतौर कुशल राजनीतिज्ञ अपना कोई निर्माण नहीं किया। वे बस सोनिया गांधी की बेटी हैं और राहुल की बहिन। इसीलिए जानी जाती हैं। उन्हें ले-देकर राजनीति में दो दशक हो गए, बावजूद कोई परिपक्वता नहीं। प्रियंका से ज्यादा अच्छा और सटीक तो सचिन पायलट ही बोल लेते हैं। सचिन ने जब भी स्पीच दी, फिजूल के मुद्दों पर नहीं दी, तार्किक लहज़े में गंभीर मुद्दों पर ही दी। लेकिन अफ़सोस प्रियंका की दौसा में यह स्पीच फेलियर थी। उनका राजस्थान आना निरर्थक ही रहा।
भले ही प्रियंका वाड्रा की शक्ल सूरत अपनी दादी इंदिरा गांधी से मिलती हो लेकिन उसमें इन्दिरा गांधी जैसी न काबलियतें हैं और न ही वैसी राजनीतिक चालाकियां और न ही भाषण देने का वह प्रभावपूर्ण लहजा। भले ही उसने जन्म से ही घर-आंगन में राजनीति का माहौल देखा हो लेकिन उसमें न वो तेवर आए और ना ही वो अंदाज आए। उनके व्यक्तित्व में एक नेता है ही नहीं। और नहीं है तो उन्होंने दिल से कभी कोशिश भी नहीं की। 2018 से लेकर अब तक प्रियंका ने कई राजनीतिक सभाओं को सम्बोधित किया। बावजूद उसने कुछ नहीं सीखा। यकीनी तौर पर इस तरह की स्पीच की उम्मीद न गहलोत ने की होगी और न सचिन ने। पहले मोर्चे पर ही प्रियंका की स्पीच प्रभावहीन साबित हो गई।
प्रियंका से ज्यादा अच्छा तो राहुल गांधी बोल लेते हैं। कभी-कभार को छोड़ दिया जाए तो वे मुद्दों पर ही बोले हैं और सटीक बोले हैं। यह अलग बात है कि गोदी मीडिया और ट्रोल आर्मी ने उन्हें नाकारा ही साबित करने की कोशिश की। वे कभी-कभार ही मुद्दों से भटकते हैं, और उसी में विपक्ष उनकी दलील का रायता फैला देता है। चूंकि अभी उनकी चवन्नी चल रही है। 2019 में जब प्रियंका वाड्रा ने खुलकर राजनीति में प्रवेश किया था तो यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि वह दूसरी इन्दिरा गांधी साबित होगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फ़िलहाल दौसा में उनका भाषण प्रभावहीन ही साबित हुआ। अस्तु प्रियंका वाड्रा के व्यक्तित्व और स्पीच से राजस्थान कांग्रेस को कोई फायदा नहीं होने वाला। यद्यपि वे युवावस्था में 1989 में अपने पिता के लिए अमेठी में चुनाव प्रचार कर चुकीं हैं, लेकिन तब से अब तक उन्होंने राजनीति की वो बारीकियां नहीं सीखीं जो उन्हें समय रहते सीख लेनी चाहिए थी, लेकिन शायद राजनीति उनका मक़सद था ही नहीं। इसीलिए उन्होंने खुद को राजनीति में नहीं निखारा।
कितना अंतर है प्रियंका और सचिन में। प्रियंका जवाहरलाल नेहरू की चौथी पीढ़ी हैं जबकि सचिन राजेश पायलट के पुत्र। जिस घर की दरो-दीवारों ने चार पीढ़ियों से राजनीति को जीया है उस घर की चौथी पीढ़ी प्रियंका कहीं से भी राजनीति में पारंगत नहीं। जबकि सचिन थोडे समय में ही कुशल राजनीतिज्ञ बन गए। ऐसे में राजस्थान को प्रियंका से किसी तरह के राजनीतिक फायदे की उम्मीद करना व्यर्थ ही होगा।

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